मेरे यादों की गागऱ से मैं, रोज़ समंदर भरता हूँ
महफिल मे तन्हाई मे बस उसकी बाते करता हूँ
वो यार समंदर का घट है, मैं हर दिन प्यासा मरता हूँ
वो है गंगा जल की धारा, और मैं गलियों मे बहता हूँ
वो यार आरती पूजा की, मैं बस कपूर सा जलता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा , मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
वों यार सुराही का घट है, मैं राही प्यासा बैठा हूँ
वो अमृत की बूँद सद्रिश, मैं यार गरल के जैसा हूँ
वो यार समाहित है मुझमे, मैं उसको खोजा करता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा, मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
वों यार सति सीता जैसी , मैं इन्द्र सा हट कर बैठा हूँ
वो गीता है महाभारत की, मैं पार्थ सा ज़िद्द कर बैठा हूँ
उसे याद नही बीता कुछ भी, पर मैं अतीत संघ बैठा हूँ
वो दुनियाँ का नूतन भविष्य, मैं तो अतीत संघ लिपटा हूँ
उसको नफ़रत है ग़ज़लों से, पर मैं ग़ज़लों मे जीता हूँ
वो भूल चुकी है नाम मेरा, मैं नाम उसी का रट्ता हूँ
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