कुछ सपने ओढूंगा मैं, कुछ सपनो पर सो जाऊंगा
जब तक सपने साकार ना हो, आँखों को ख़ूब थकाऊँगा
सपनो का शीश महल होगा, जिसमे आशा का पर होगा
शायद पृथ्वी के आँचल मे, अपना एक सुंदर कल होगा
सपनो की परिभाषा को, सपनो से यहाँ बदलना है
काँच के सपनो को हिम्मत कर, फ़ौलादों पर मढ़ना है
हो सपनो का परिणाम यहाँ,सपनो का फिर परिमाण ना हो
हो जन गण मन की गूँज जहाँ, वहाँ जन के मन की हार ना हो
हो हर सपनो मे प्यार भरा, सपनो मे भ्रष्टाचार ना हो
हों अपने ऐसे सपने कि, फिर आज़ादी बेकार ना हो
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