गंध बारूदों कि अब,
आने लगी हर मोड़ से |
कह रहा है हर कोई,
हमको कोई खतरा नहीं |
यहाँ धर्म भाषा जाति कि,
चिन्गारियाँ बिखरी हुई |
पर कह रहा है हर कोई |
मुझको कोई खतरा नहीं |
अब पडोसी तक दखल,
देता है हर एक बात में |
पर कह रहा है रहनुमा,
उनसे कोई खतरा नहीं |
है लचर अपनी व्यवस्था,
ये जानता है हर कोई |
पर दिलासा दे रहा है,
हमको कोई खतरा नहीं |
है समय अब भी,
सुधर जाएँ अगर तो ठीक है |
बाद में कह ना सकेंगे,
हमको कोई खतरा नहीं.|
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
ReplyDeletethanks Bhaskar bhai..
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