मन में झांके हर किसी के,
यार ये मुमकिन ना था |
तन से जो सुन्दर लगा,
हम यार उसके हो लिए |
एक घडी में हर किसी को,
जान ले मुमकिन ना था |
एक नजर में जो जँचा'
हम यार उसके हो लिए |
वो जो प्यार का था रास्ता,
मेरे लिए तो नया ही था |
चले डगमगा के जिधर कदम
मैं उसी लगी में निकल गया |
संग कारवां का साथ हो,
ये चाह तो बचपन से थी |
फिर भीड़ जो अच्छी लगी,
मैं यार उसमे खो लिया |
संग कारवां का साथ हो,
ReplyDeleteये चाह तो बचपन से थी |
फिर भीड़ जो अच्छी लगी,
मैं यार उसमे खो लिया |
शानदार रचना
dhanyawad Ashok ji
ReplyDeleteबहुत बढ़िया रचना!
ReplyDeleteबधाई!!
@Samir ji
ReplyDeletebahut bahut dhanyawad !!
wastav me kisi ke chehre se uski asliyat ya man ki khoobsoorati ko nahi dekha ja sakta aur baher ki sunderta akser door ke dhool hoti hai.
ReplyDeletebahut hi achhi rachna hai lage raho dost
@ kARAN
ReplyDeleteDHANYAWAD MITRA