तुम ग़ज़ल बन के जो,
आ गयी सामने |
बस तुम्हे पढके ही,
मैं कवि बन गया |
तेरी हर इन्द्रियाँ,
यूँ थी अनुपात में |
नज़म गढ़ दिया |
तेरे यौवन कि मदिरा,
बही इस तरह |
घूरते-घूरते मैं,
कहीं बह गया |
होंठ से दाँत कि,
जंग को देख कर,
क्या बताऊँ तुम्हे,
मैं कहाँ खो गया |
waah badhiya...
ReplyDeletekahan kho gaye...
ReplyDeletekidhar magun ho gaye...
yowan rash lekar
ka mast ho gaye....
तेरे यौवन कि मदिरा,
ReplyDeleteबही इस तरह |
घूरते-घूरते मैं,
कहीं बह गया
क्या बात है वाह...बहुत खूब कहा है...
नीरज
Awesome bhai very rare to see this kinda hindi nowdays...
ReplyDelete:):):)
Beautiful as always.
ReplyDeleteIt is pleasure reading your poems.
Thanks!!
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