सूर्य को आकाश से,
पृथ्वी पर लाना चाहता हूँ ।
मैं धरा से तम का सारा,
भय मिटाना चाहता हूँ ।।
मैं चाहता हूँ मुक्त हो,
अब रोशनी की हर किरण ।
बस इसलिए तूफान में,
दीपक जलाना चाहता हूँ ।
लकड़ियाँ गीली हैं सत्ता की,
ये मैं भी जनता हूँ ।
सो जिद्द की खुरचन से,
झूठ का, महल जलाना चाहता हूँ ।
जानता हूँ, वो निघर्घट,
बेशरम है रहनुमा पर ।
मैं जिद्द के ढेले से किले को,
ध्वस्त करना चाहता हूँ ।
मैं चाहता हूँ मुक्त हो,
अब रोशनी की हर किरण ।
बस इसलिए तूफान में,
दीपक जलना चाहता हूँ ।
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