कोई मुझको न समझ ले, तेरा सच्चा आशिक,
स्लेट पे लिख के तेरा नाम, मिटा देता था ।
मुझे मालूम न था, प्यार किसको कहतें थें,
दिल से मजबूर था मैं, बस तुझे ही तकता था ।
मुझमे हिम्मत न थी, इजहारे बयां क्या करता,
ज़िक्र आते ही तेरा, हर घड़ी थम जाती थी ।
मेरे माँ को भी इल्म था, मेरी इस चाहत का,
वो नाम लेके तेरा, मुझको छला करती थी ।
तेरे घर जाने से पहले, संवरना घंटो तक,
वो आके घन्टों तेरी याद में डूबे रहना ।
पढ़ा हुआ मैं कभी, भूलता नहीं था मगर,
न जाने क्यूँ तेरे अक्षर ही गढ़ा करता था ।
कोई मुझको न समझ ले, तेरा सच्चा आशिक,
स्लेट पे लिख के तेरा नाम, मिटा देता था ।
स्लेट पे लिख के तेरा नाम, मिटा देता था ।
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