क्यूँ गरल, सरल हो कर बैठा,
क्यूँ अमृत जल सा बह बैठा ।
क्यूँ नदियाँ सीमा लाँघ गयी,
क्यूँ सागर सहज सरल बैठा ।।
क्यूँ हिम, बेबस से पिघल रहे,
क्यूँ यहाँ वहां चट्टान गीरा ।
क्या वजह, हिमालय घायल है,
क्यूँ पूरा हिंदोस्तान हिल़ा ।।
क्यूँ बंटी हुई आजादी है,
क्यूँ हर षड़यंत्र में खादी है ।
क्यूँ जख्मी भारत की सीमा,
किसने कर दिया छ्लनी सीना ।।
क्यों हार मान सब बैठ गएँ ,
जब चार दिनों का है जीना ।।
यूँ हम सब मिल संघर्ष करें,
कि पूरी दुनियाँ ही हर्ष करे ।
भारत का भाल चमक जाए,
कुछ ऐसा अनुपम कर्म करें ॥
क्यूँ बैठे सब विपरीत यहाँ ,
क्यूँ ऐठे सब फिर यहाँ वहाँ ।
जीवन गर एक समर्पण है,
तो खोना क्या, और पाना क्या ।।
क्यूँ गरल, सरल हो कर बैठा,
क्यूँ अमृत जल सा बह बैठा ।
क्यूँ नदियाँ सीमा लाँघ गयी,
क्यूँ सागर सहज सरल बैठा ।।
क्यूँ हिम, बेबस से पिघल रहे,
क्यूँ यहाँ वहां चट्टान गीरा ।
क्या वजह, हिमालय घायल है,
क्यूँ पूरा हिंदोस्तान हिल़ा ।।
क्यूँ बंटी हुई आजादी है,
क्यूँ हर षड़यंत्र में खादी है ।
क्यूँ जख्मी भारत की सीमा,
किसने कर दिया छ्लनी सीना ।।
क्यों हार मान सब बैठ गएँ ,
जब चार दिनों का है जीना ।।
यूँ हम सब मिल संघर्ष करें,
कि पूरी दुनियाँ ही हर्ष करे ।
भारत का भाल चमक जाए,
कुछ ऐसा अनुपम कर्म करें ॥
क्यूँ बैठे सब विपरीत यहाँ ,
क्यूँ ऐठे सब फिर यहाँ वहाँ ।
जीवन गर एक समर्पण है,
तो खोना क्या, और पाना क्या ।।
Kyo har sadyantra me khaadi hai...bde bhaiya...
ReplyDelete