ढूंढ रहा हूँ व्याकुल होकर,
कुछ तो खाली खाली सा है।
पता नहीं क्यों लगे अधूरा,
क्यूँ मन बिन पानी, मछली सा है ।
चाह नहीं अम्बर छूने की,
ना धरती पर, पग धरने की।
ना कोई ख्वाहिस् जीने की,
और ना ही इच्छा मरने की ।
ना मैं योगी, ना मैं भोगी,
न जाने किस ओर चला हूँ ।
आनंद हूँ, आनंद पाने को,
मृग बन, कस्तूरी ढूंढ़ रहा हूँ
कुछ तो खाली खाली सा है।
पता नहीं क्यों लगे अधूरा,
क्यूँ मन बिन पानी, मछली सा है ।
चाह नहीं अम्बर छूने की,
ना धरती पर, पग धरने की।
ना कोई ख्वाहिस् जीने की,
और ना ही इच्छा मरने की ।
ना मैं योगी, ना मैं भोगी,
न जाने किस ओर चला हूँ ।
आनंद हूँ, आनंद पाने को,
मृग बन, कस्तूरी ढूंढ़ रहा हूँ
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