सोच समझ, करे बस प्रपंच,
बस सोचूं, कुछ कर पाऊँ ना ।
जानू अंतर, क्या पाप पुण्य
फिर भी खुद को समझाऊं ना ।।
काम क्रोध, मद लोभ, शत्रु हैं,
ये मुझे पता है बचपन से ।
करके देखें लाख जतन,
पर विजय न पाया इस मन पे ।।
इच्छा है सब कुछ पाने की,
हर दिल में बस छा जाने की ।
पर राह कौन सी चुनु यहाँ,
जिसमे क्षमता बढ़ते जाने की ॥
क्यों हुआ जन्म इस धरती पर,
ना जानू मैं उद्देश्य है क्या ।
बस भटक रहा हूँ, आस लिए,
मंजिल तक एक दिन पहुँचूँगा ।।
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