Wednesday, May 27, 2009

नाम फैशन का

जब से दुनियाँ आपको ,
आधुनिक कहने लगी |
बस उसी पल से तुम्हारी ,
बिजलियाँ गिरने लगी |

तन ढाका करता था पूरा,
जब तलक आभाव था |
अब बचे कतरन से दौलत ,
बे-सबब बहने लगी |

मेरी सराफत भी उन्हें ,
अब चाल सी लगाने लगी |
जब से घर की लाज बाहर,
रात तक रहने लगी |

दाम कपडों के यहाँ,
बे इंतहा गिरने लगे |
दौपदी जब से यहाँ ,
बिन चीर बिचरने लगी |

नाम फैशन का हुआ ,
इंसानियत गिरने लगी |
जब से रम्भा रैंप पर ,
दो पीस में चलने लगी |

जब से दुनियाँ आपको ,
आधुनिक कहने लगी |
बस उसी पल से तुम्हारी ,
बिजलियाँ गिरने लगी |

Monday, May 25, 2009

सपथ ग्रहण या ' ग्रहण '

फ़ुट रहे हैं लड्डू दिल में,
ख़त्म हुआ मतदान |
सरे मुद्दे भूल के आओ ,
हम फिर टकराए जाम |

सही गलत की चर्चा छोडो,
यहाँ से नोचो वहाँ पे जोडो |
पांच साल का समय बड़ा है,
गठबंधन से धन गठीयालो |

तुमने मुझपर मैंने तुम पर,
कीचड़ खूब उछाला है |
चलो बदल लें कूर्ता अपना |
जो कीचड़ से कला है |

जनता थी चालाक मगर,
कुछ खास नहीं था करने को |
पांच साल के लिए हमें ,
खुद चुनकर लायी मरने को |

प्रतिनिधि बनकर जनता की,
प्रतिघात उसी पर करना है |
निधि लूट कर जनता की ,
अब खुद की जेबें भरना है |

फ़ुट रहे हैं लड्डू दिल में,
ख़त्म हुआ मतदान |
सरे मुद्दे भूल के आओ ,
हम फिर टकराए जाम |

Wednesday, May 13, 2009

किसका कुर्ता है सफेद,

किसका कुर्ता है सफेद,
ये भेद बताने आया हूँ
मेरा कुर्ता सबसे सफेद,
ये तुम्हे बताने आया हूँ |
चोर उच्च्को की टोली ले
इस चुनाव मे आया हूँ |
राम राज़ का सपना अपना,
मैं तुम्हे दिखना आया हूँ |
बंद करूँगा केस सभी,
जो खुले हुए है थाने मे |
दबा के रखूं मैं पैसा,
इस बार भी संसद जाने मे |
एक बार चुनो तुम मुझे यहाँ,
फिर चुन चुन तुम्हे सताऊँगा |
पाँच साल के बाद तुम्हे,
फिर स्वप्न यही दिखलाऊंगा |
मुझको चुनना है चुन लो ,
मुझ जैसा कोई और नही |
जिसमे जनता की खुशियाँ,
फिर आएगा ऐसा दौर नही |
जो दंगो का दोषी होगा,
मंत्री पद उसे दिलाऊँगा |
फिर सालों तक कोर्ट के बाहर,
न्याय तुम्हे दिलवाऊंगा |
सालों साल लगेगा चक्कर,
न्याय यहाँ पर पाने मे |
और मिलेगा न्याय तुम्हे,
जब सांस ना होगी खाते मे |
किसका कुर्ता है सफेद,
ये भेद बताने आया हूँ |

Tuesday, May 12, 2009

समस्या ही समस्या है

समस्या ही समस्या है,
कहो कैसे गिनाए हम |
यूँ ही काग़ज़ पर लिख दे,
या मौखिक ही सुनाए हम |
जो भी आता है बस,
वादों की गठरी बाँध जाता है|
बहुत कुछ है भरा इसमे,
कहो कैसे उठाए हम |
हमारे गाँव मे भी है ,
गड़े बिजली के कुछ खंबे |
इनायत हो अगर उनकी ,
तो कुछ रोशन भी हो जाए|
नही अंतर समझ आता,
तालाबों और सड़कों मे |
कहो किस रास्ते इस गाँव के,
दर्शन कराएँ हम |
है बसता गाँव मे भारत,
यहाँ के लोग कहते है |
कभी फ़ुर्सत मे आना तो,
तुम्हे भारत घूमए हम |

Friday, May 1, 2009

चुनाव और मुद्दा

किसी को बाबरी का गम,
कोई मस्जिद बना रहा |
है वक़्त वादों का सो,
हर कोई सपने दिखा रहा |
तुरत रंग बदलने का हुनर,
यहाँ अब पास है सबके |
जो कल तक साथ था ,
वो ही यहाँ खंजर चला रहा |
है जिसका सोचने का काम,
वो बस सोचता रहे |
उन्हें फुर्सत नहीं इतनी ,
की वो कुछ सोच तक सके |
शुरू है गलियों का दौर,
अब दोनों ही मुकाम से|
गरम है लौह पुरुष तो,
कहाँ कमजोर शांत है |
न जाने किसने दिया,
लौह पुरुष का उन्हें दर्जा |
एक वार भी न झेल सके,
जो लौह पुरुष का |
न हो सर्कार वो,
जो देश का मखौल उडाये |
दलित के नाम पर ,
खुद के लिए फिर महल बनाए |
न कोई फिर हँसे अब
आम आदमी के नाम पर |
चुनो उसको यहाँ जो दे दे,
जान अपनी देश पर |
किसी को बाबरी का गम,
कोई मस्जिद बना रहा |
है वक़्त वादों का सो,
हर कोई सपने दिखा रहा |