Friday, May 1, 2009

चुनाव और मुद्दा

किसी को बाबरी का गम,
कोई मस्जिद बना रहा |
है वक़्त वादों का सो,
हर कोई सपने दिखा रहा |
तुरत रंग बदलने का हुनर,
यहाँ अब पास है सबके |
जो कल तक साथ था ,
वो ही यहाँ खंजर चला रहा |
है जिसका सोचने का काम,
वो बस सोचता रहे |
उन्हें फुर्सत नहीं इतनी ,
की वो कुछ सोच तक सके |
शुरू है गलियों का दौर,
अब दोनों ही मुकाम से|
गरम है लौह पुरुष तो,
कहाँ कमजोर शांत है |
न जाने किसने दिया,
लौह पुरुष का उन्हें दर्जा |
एक वार भी न झेल सके,
जो लौह पुरुष का |
न हो सर्कार वो,
जो देश का मखौल उडाये |
दलित के नाम पर ,
खुद के लिए फिर महल बनाए |
न कोई फिर हँसे अब
आम आदमी के नाम पर |
चुनो उसको यहाँ जो दे दे,
जान अपनी देश पर |
किसी को बाबरी का गम,
कोई मस्जिद बना रहा |
है वक़्त वादों का सो,
हर कोई सपने दिखा रहा |

2 comments:

  1. हर कोई सपने दिखा रहा..............

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  2. हर कोई सपने दिखा रहा |

    SAPNE DIKHA KAR LOOT RAHI HAI DUNIYA

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