जब से दुनियाँ आपको ,
आधुनिक कहने लगी |
बस उसी पल से तुम्हारी ,
बिजलियाँ गिरने लगी |
तन ढाका करता था पूरा,
जब तलक आभाव था |
अब बचे कतरन से दौलत ,
बे-सबब बहने लगी |
मेरी सराफत भी उन्हें ,
अब चाल सी लगाने लगी |
जब से घर की लाज बाहर,
रात तक रहने लगी |
दाम कपडों के यहाँ,
बे इंतहा गिरने लगे |
दौपदी जब से यहाँ ,
बिन चीर बिचरने लगी |
नाम फैशन का हुआ ,
इंसानियत गिरने लगी |
जब से रम्भा रैंप पर ,
दो पीस में चलने लगी |
जब से दुनियाँ आपको ,
आधुनिक कहने लगी |
बस उसी पल से तुम्हारी ,
बिजलियाँ गिरने लगी |
waah kya baat kah di
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
फ़ैशन के पर उधेड़ रहे हैं
ReplyDeletewakt ke sath badalta fashion
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