Wednesday, May 27, 2009

नाम फैशन का

जब से दुनियाँ आपको ,
आधुनिक कहने लगी |
बस उसी पल से तुम्हारी ,
बिजलियाँ गिरने लगी |

तन ढाका करता था पूरा,
जब तलक आभाव था |
अब बचे कतरन से दौलत ,
बे-सबब बहने लगी |

मेरी सराफत भी उन्हें ,
अब चाल सी लगाने लगी |
जब से घर की लाज बाहर,
रात तक रहने लगी |

दाम कपडों के यहाँ,
बे इंतहा गिरने लगे |
दौपदी जब से यहाँ ,
बिन चीर बिचरने लगी |

नाम फैशन का हुआ ,
इंसानियत गिरने लगी |
जब से रम्भा रैंप पर ,
दो पीस में चलने लगी |

जब से दुनियाँ आपको ,
आधुनिक कहने लगी |
बस उसी पल से तुम्हारी ,
बिजलियाँ गिरने लगी |

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