Tuesday, September 16, 2008
शैतान का डर
ना राम से डर है ,
ना ही रहमान से डर है |
नही मज़हब यहाँ जिसका,
उसी शैतान का डर है |
दीवारे यार फौलादी है,
और हर राहो पर पहरा है|
छुपा है यार जो घर मे उसी,
उसी भेदी का बस डर है|
मुझे मुझसे जुदा करने को,
चले चाले जो अब हर पल |
मेरी परछाईयो को यार,
उस काली रात का डर है |
मुझे जो पास अपने रोक कर ,
फिर बरगलाता है |
करे जो रूह काबू मे,
उसी पंडित से ख़तरा है |
नही डर कुछ धमाकों से,
जो पसरा इस शहर मे है |
जो फूँके जहर कानों मे ,
उसी मुल्ला से ख़तरा है |
ये घर अपना है कहने को ,
लगा हर ईंट अपना है |
जो नीचे जानवर है ,
अब उसी अपने से ख़तरा है|
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