Tuesday, September 16, 2008

उड़ने की कोशिश




मैं यार यहाँ बिन पँखो के ,
उड़ने की कोशिश करता हूँ |
इस भीड़ भाड़ की दुनियाँ मे,
पैदल चलने से डरता हूँ |

मैं यार खुली आँखों से अब,
कुछ सपने ढूँढा करता हूँ |
इस सपनो की दुनियाँ मे ,
अब खो जाने से डरता हूँ |

जो यार नही मेरा अपना ,
मैं उसको ढूँढा करता हूँ |
मैं यार मतलबी दुनियाँ मे ,
तन्हा रहने से डरता हूँ |

मैं यार समंदर के तल पर ,
कुछ मोती ढूँढा करता हूँ |
मैं यार आलसी दुनियाँ मे ,
मेहनत करने से डरता हूँ

मैं यार तरंगो की दुनियाँ मे,
कुछ खुशियाँ ढूँढा करता हूँ |
मैं रंग बिरंगी दुनियाँ के,
काले धब्बों से डरता हू |

3 comments:

  1. मैं यार समंदर के तल पर ,
    कुछ मोती ढूँढा करता हूँ |
    मैं यार आलसी दुनियाँ मे ,
    मेहनत करने से डरता हूँ
    वाह...वा...एक दम नयी सोच और नए तेवर लिए हुई आप की ये रचना सब से अलग है...बहुत खूब...लिखते रहिये.
    नीरज

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  2. बड़ा निराला अंदाज है भई!! वाह!! बहुत खूब-लिखते रहो!

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  3. बड़ा निराला अंदाज है भई!! वाह!! बहुत खूब-लिखते रहो!

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