Thursday, December 25, 2008

बीते बातों की चादर....

बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||

कुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
फिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||

यार किसी के यादों संग, मै खुद को भुला करता हूँ |
फिर यार पुराने बातों मे, मैं खुद को खोजा करता हूँ ||

कैसा दिखता था तब मै, ये खुद से पूछा करता हूँ |
उसके कदमो के आहट से,मैं अब भी चौंका करता हूँ ||

चुप रह कर भी वो उसका, सारी बातें कह जाना |
वो उसका झुक कर चलना, फिर धीरे से मुस्काना ||

वो चादर जितनी लम्बी है, यादे उतनी ही गहरी है |
आसान है इसमे खोना पर, मुस्किल है बाहर आना ||

बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||

6 comments:

  1. कुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
    फिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||


    बहुत अच्‍छी रचना के लिए बधाई

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  2. कुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
    फिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||

    बहुत गहरी बात!

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    http://prajapativinay.blogspot.com/

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  3. यार किसी के यादों संग, मै खुद को भुला करता हूँ |
    फिर यार पुराने बातों मे, मैं खुद को खोजा करता हूँ ||

    बहुत खूब .बढ़िया लिखा है आपने

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