बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||
कुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
फिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||
यार किसी के यादों संग, मै खुद को भुला करता हूँ |
फिर यार पुराने बातों मे, मैं खुद को खोजा करता हूँ ||
कैसा दिखता था तब मै, ये खुद से पूछा करता हूँ |
उसके कदमो के आहट से,मैं अब भी चौंका करता हूँ ||
चुप रह कर भी वो उसका, सारी बातें कह जाना |
वो उसका झुक कर चलना, फिर धीरे से मुस्काना ||
वो चादर जितनी लम्बी है, यादे उतनी ही गहरी है |
आसान है इसमे खोना पर, मुस्किल है बाहर आना ||
बीते बातों की चादर से, मैं घाव पुराने ढकता हूँ |
फिर यार पुराने जख्मो पर, यादों का मरहम रखता हूँ ||
waah bahut khub
ReplyDeleteकुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
ReplyDeleteफिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||
बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई
Aap dono ko bahut bahut dhanyawad !!!!!!
ReplyDeleteकुछ यादें मुझे लुभाती है, कुछ यादें हमे रूलाती है |
ReplyDeleteफिर अश्क बहाकर मै अपने, यादों की खेती करता हूँ ||
बहुत गहरी बात!
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यार किसी के यादों संग, मै खुद को भुला करता हूँ |
ReplyDeleteफिर यार पुराने बातों मे, मैं खुद को खोजा करता हूँ ||
बहुत खूब .बढ़िया लिखा है आपने
bahot khub..likha haiaapne ........
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