यार पड़ोसन के बच्चे, अब अपने जैसे दिखते है |
दर्द यही है बस दिल मे, वो मुझको अंकल कहते है ||
है ढीला- ढाला नेबर मेरा , पर यार पड़ोसन टाईट है |
जितने मे मेरा ब्रेकफास्ट, उतनी जानम की डाएट है ||
मैं अमजद जी सा टाईट, वो यार तनुश्री दिखती है |
यार खड़ी जब बालकोनी मे, तिरछी नज़रों से तकती है ||
था यार अटल सा सुस्त कभी,अब लालू जैसा दिखता हूँ |
वो यार दूधारू भैंस मेरी, और मैं बाल्टी जैसा तकता हूँ ||
दिल में कुछ-कुछ होता है, जब उसको देखा करता हूँ |
नखरे सब सहता हूँ उसके, और लव-यू लव-यू कहता हूँ ||
सायद ये मेरे ख्वाब कभी, झटके से सच हो जाएँगे |
जब यार पड़ोसन के बच्चे, मुझे अब्बा कहकर बुलाएँगे ||
यार पड़ोसन के बच्चे, अब अपने जैसे दिखते है |
दर्द यही है बस दिल मे, वो मुझको अंकल कहते है ||
भाई मजा आगया,
ReplyDeleteहम आपके दर्द में बराबर शामिल रहेंगे, शायद आपके पडोसन की पडोसन हमें भी पसंद आ जाए ;-)
:)
ReplyDeleteबहुत बढ़िया, भई
ReplyDelete---
चाँद, बादल, और शाम
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गुलाबी कोंपलें
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bahut bahut shukriya aap sabhi logo ka
ReplyDeleteउम्दा...
ReplyDeletebadhiya!
ReplyDeleteबहुत मजेदार कविता है.
ReplyDelete:)