जब ख़ौफ़ नही है मरने का, फिर मुद्दा क्या है डरने का |
सब एक साथ ही आ जाओ, यूँ लूक्का-छिप्पि करना क्या ||
यूँ बारी-बारी तड़प-तड़प, कापुरुषों सा अब जीना क्या |
नापाक इरादों के गिरगिट, यूँ रंग बदल अब जीना क्या ||
है जिस्म हमारा भारत से, फिर भारत मे मिल जाएगा |
पर जब ठनका माथा अपना, तू भाग कहाँ फिर जाएगा ||
हम तो बारुदों पर चल कर, यहाँ इस मुकाम पर आए है |
इतनी तेरी औकात ना थी , हम जितना सहते आये है ||
ये ताज नही है फूलों का , जब चाहा इसे पहन लोगे |
गर हुई हिमाकत फिर ऐसी, लाहौर भी तुम तब खो दोगे ||
बाँध सबर का टूट ना जाए, ये दुआ करो अपने रब से |
खोज ना पाओगे खुद को , जब भूले से भी हम सनके ||
भीख के धन पर ऐश करो, ना ऐसे व्यर्थ गावओ तुम |
छोड़ो चिंता अब धर्म-क़ौम की, खुद का घर बनवओ तुम ||
करने को पूरा पाक ध्वस्त, यहाँ एक जवान ही काफ़ी है |
यहाँ करने से पहले कुछ भी, सौ बार सोचकर आना तुम ||
यहाँ लुक-छिप गोलाबारी कर, तुम हमे हिला ना पाओगे |
हमे मिटाने की चाहत मे, खुद मिट्टी मे मिल जाओगे ||
है जिस्म हमारा भारत से, फिर भारत मे मिल जाएगा |
पर जब ठनका माथा अपना, तू भाग कहाँ फिर जाएगा ||
bahut acche
ReplyDeleteबहुत सशक्त रचना ! कृपया इसे भी देखें-
ReplyDeletehttp://mishraarvind.blogspot.com/
Bhut shi kha bhaiya apne...
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