आदमी औरत का संगम,
दशकों पुरानी बात है |
अब प्रयोगों से भी,
पैदा हो रहा है आदमी |
जोडियाँ बनती हैं ऊपर,
वर्षों पुरानी बात है |
आज कल तो मर रहा है,
आदमी पर आदमी |
मूर्खता कह लो इसे,
या प्रेम कि पराकास्ठा |
भौतिक सुखों कि चाह ले,
दुनियाँ से लड़ता आदमी |
मन कि आज़ादी कहो या,
मानसिक दुर्भावना |
भेद लिंगो का मिटा,
कुदरत से लड़ता आदमी |
तितलियाँ भंवरे यहाँ,
अपने में ही मद मस्त है |
जाने ये किस मोड़ पर,
अब बढ़ रहा है आदमी |
इसकी नक़ल उसकी नक़ल,
हर रोज़ करता आदमी |
सभ्यता को ताख पर रख,
रोज़ मरता आदमी |
जो जरूरी हो उसे,
दिल खोल के अपना सके |
इस ज़रा सी बात से,
कीचड़ में सनता आदमी |
रेत पर पानी का दरिया,
है ये भौतिकवाद बस |
भूल कर अपनी हकीक़त,
दर-दर भटकता आदमी |
तितलियाँ भंवरे यहाँ,
अपने में ही मद मस्त है |
अब प्रयोगों से ही पैदा,
हो रहा है आदमी |
khubsurat rachna...
ReplyDeletevery nice u naked the hidden truth of society...
ReplyDeleteAAK KAL KO DARSHATI HAIN AAPKI RACHNAA
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