न मदिरा कि प्यास मुझे,
ना काम बिना मदिरा चलता |
न देवदास सा मैं पागल ,
न बिन पारो ही मन लगता |
ग्वालाये रास नहीं आती,
नाही राधा ही मन भाती |
न कोई स्वर्ग कि चाह मुझे,
न बिना मेनका आँख लगे |
व्यथा मेरी सुनकर अक्सर,
संसार ये कहता है हंस कर |
राम राम कि बेला में,
देखो बैठा है फिर पीकर |
वाह!! बहुत खूब!!
ReplyDeleteव्यथा मेरी सुनकर अक्सर,
ReplyDeleteसंसार ये कहता है हंस कर |
राम राम कि बेला में,
देखो बैठा है फिर पीकर |
-मस्त!! :)
बहुत बहुत धन्यवाद्
ReplyDeleteअजीब पागल हो भाई.
ReplyDeleteखोपड़ी घूम गयी मेरी.
बप्पा रे !!!
सोचा था टिप्पणी दे दूं लेकिन नहीं दूंगा.
ReplyDelete:)
waah maza aa gaya
ReplyDeletewaah guru ji parnaam lekhni ko.
ReplyDeletekya baat kahi...
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