ख़ुशी के समन्दर में,
ये गम के बुलबुले क्यूँ है |
अपनों के इस भीड़ में,
हम यहाँ तन्हा क्यूँ है|
यूँ तो सूरज रोज आता है,
मेरे दर पर हर सुबह|
फिर भी मेरे दर पर,
ये घोर अँधेरा क्यूँ है |
साथ चलने से यूँ तो,
मिटा करती थी दूरियां |
फिर ये हम दम से,
ये इतना फांसला क्यूँ है |
मिलने कि है आरजू,
कई मुद्दत से सनम |
दिलों के बिच में अब तक,
ये गहरी खाइयाँ क्यूँ है |
GOOD KEEP IT UP
ReplyDeleteअच्छी रचना , अच्छे भाव
ReplyDeleteऔर बेहतर कोशिश की जा सकती थी।
ReplyDeletetheek lagi aapki yah rachna shukriya
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteदिलो के बीच जो खाइयाँ पैदा हो गई है उन्हें भरना चाहिए
और दिलो के बीच जो दूरियां आ गई है उन्हें कम करना चाहिए
आभार
महेन्द्र मिश्र
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteदिलो के बीच जो खाइयाँ पैदा हो गई है उन्हें भरना चाहिए
और दिलो के बीच जो दूरियां आ गई है उन्हें कम करना चाहिए
आभार
महेन्द्र मिश्र
बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteअच्छी रचना , अच्छे भाव
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