किसी कि भावना को आहत करने या किसी को उपदेश देने का मेरा कोई इरादा नहीं है |ये पंक्तियाँ आज के परिवेश में फैशन कि वो तस्वीर दिखाना चाहती है जिससे हम मुह तो फेर सकते है पर नकार नहीं सकते. अगर किसी समूह या समुदाय को मेरी बातें ठीक ना लगे तो उन्हें अपना विरोध दर्ज करने का पूरा अधिकार है | कृपया कर इसे फैशन विरोधी या समुदाय विरोधी ना समझे और अगर किसी कि भावना को ढेस पहुंचे तो क्षमा चाहूँगा |
कलयुग में दुष्यासन आके,
ख़ुद अपने ऊपर शर्माए |
छलिया कृष्ण कहाँ बैठा है,
क्यूँ न चीर बढाये |
चीर नही है तन पर कोई,
नीर न आँख में बाकी,
छुपा कहाँ है आज कृष्ण,
अब बाँध के हाँथ में राखी |
कृष्ण :-
एक नही है आज द्रौपदी,
किसकी लाज मैं राखु |
बिन देखे दिखता है सब कुछ,
क्या धाकुं क्या तोपूँ
बैठे यही सोचता हूँ कि,
क्या आऊँ कलयुग में,
जहाँ लाज को लाज नही आती है,
आज यहाँ इस युग में |
ये कलियुग ऐसा पहिया है,
चक्र वही दोहराए |
मानव आदि मानव से मानव बन,
फ़िर अदि मानव बन जाए|
कलयुग में दुष्यासन आके,
ख़ुद अपने ऊपर शर्माए |
छलिया कृष्ण कहाँ बैठा है,
क्यूँ न चीर बढाये |
बहुत खूब!
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट
बहुत बहुत धन्यवाद् संजय जी
ReplyDeleteसही कहा आपने मगर किया क्या जाये..
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति!!
न कुछ धांकिये, न कुछ तोपिये, बस यूं ही पोस्तें थोंकते रहिये.
ReplyDeleteसमीर जी प्रणाम !
ReplyDeleteअब तो नदी के साथ बहने में ही भलाई है सो बहते चलिए ..
आपके टिप्पणी रुपी आशीर्वाद के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् !!
nice
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