1:
चैन से सोते थे हम,
जब घर में दरवाज़ा ना था |
जब से पहरेदार रखे,
नींद भी आती नहीं |
जब से पहरेदार रखे,
नींद भी आती नहीं |
2:
देख कर उनको कदम ,
रुकने लगें क्या बात है |
सोचने को हैं विवश,
क्या यार तुममे खास है |
दर्जनों गलियां बदल ली,
यार फिर भी क्या मिला |..
हर गली हर मोड़ पर,
बस तेरा ही आभास है |
3:
दिल कि बातें अब जुबां पर ,
उस तरह आती नहीं |
अनगिनत चहरे बदल लेता हूँ,
मैं हर मोड़ पर |
पहले दिल कि बात कागज़ पर,
छपा करती थी सीधे |
अब तो सीधे राह से,
जाने कब गुजरे कलम |
४:
राह पर मेरे लिए,
कुछ फूल कुछ काटें भी थे |
आदमी के भीड़ में,
कुछ शोर सन्नाटे भी थे |
बात किस्मत कि ना थी,
थी बात रिश्तों कि यहाँ |
कुछ मिले काटें अगर,
कुछ हमने भी बांटे तो थे |
संग मेरे जो घटा,
दिल खोल के अपना लिया |
राह में गर कुछ लुटा ,
कुछ हमने भी नोचें ही थे |
बहुत बढिया छंद हैं....बहुत सुन्दर लिखे हैं बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteBahut bahut dhanyawad Baali Ji
ReplyDeleteबहुत सुंदर । कुछ टायपिंग की गलतियां रह गई हैं, जैसे आभास हो आभाष नही और लुटा हो लूटा नही । सीधे राह से न कि रह से । इससे कुछ खरखरी सी लगती है । आप नाराज न हों ।
ReplyDeleteबहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया.......माफी चाहता हूँ..
@Asha Ma'am: Age dhyan rakhunga..
ReplyDeletePlease keep blessing.
@ Bhaskar. thanx brother.