TAPASHWANI
बे रस होती आधुनिक काव्य और तकनीक
Wednesday, October 1, 2014
सामने आया न करो ।
तुम्हे मगरूर कह कह के,
बनाई है दुकाँ हमने,
फिर तुम यूँ मासूम सी,
दुनियां को न दिख जाया करो ।
बिना कहे ही सौ नक़ाब,
भिजवाया था तुम्हे ।
बिना नक़ाब के,
फिर तुम सामने आया न करो ।
1 comment:
Kailash Sharma
October 1, 2014 at 8:25 PM
बहुत खूब...
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बहुत खूब...
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