समंदर से कर दुश्मनी,
मैं किनारों पर सपने सुखाता रहा |
हर लहर यूँ तो दुश्मन घरौंदो की थी,
वो मिटाती रही मैं बनाता रहा |
खिचता था लकीरे किनारों पर मैं,
पर साहिल पर मुझको भरोशा ना था |
ख्वाब अपने भिंगो करके अश्को से मैं,
काल के गाल मे ही छुपाता रहा |
जब बनाने लगा घोंसला प्यार का,
रुख़ हवाओं का भी फिर बदल सा गया |
जो हवाए फिर देती थी दिल को सुकून,
आज वो भी अचानक दहकने लगी |
चाँद पूरा था जो कल तक आकाश मे,
आज वो भी ग्रहण से प्रभावी लगा |
पी कर जिसको भुलाता था संसार को,
आज बोतल वही फिर नशे मे लगी |
समंदर से कर दुश्मनी,
मैं किनारों पर सपने सुखाता रहा |
हर लहर यूँ तो दुश्मन घरौंदो की थी,
वो मिटाती रही मैं बनाता रहा |
चाँद पूरा था जो कल तक आकाश मे,
ReplyDeleteआज वो भी ग्रहण से प्रभावी लगा |
पी कर जिसको भुलाता था संसार को,
आज बोतल वही फिर नशे मे लगी |
बहुत खूब कहा आपने
sach bahut bhavpurn rachana badhai.
ReplyDeletebahut bahut dhanyawaad ...
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDelete---
आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
bahut sundar kavita hai....
ReplyDeleteसमंदर से कर दुश्मनी,
ReplyDeleteमैं किनारों पर सपने सुखाता रहा |
हर लहर यूँ तो दुश्मन घरौंदो की थी,
वो मिटाती रही मैं बनाता रहा |
WAH......!!
Tapashwani ji upar k dono stanza bhot badhiya lage.......