अभी शुरुआत है, ना जाने कितने तीर छुपा रखे है |
हमने इस चेहरे पर,ना जाने कितने चेहरे लगा रखे है |
वो जो दौरे भगदड़ थी, उसकी बिसात कुछ भी नही,
तुम्हारे वास्ते हर घर मे नया जाल बिछा रखा है |
मुझे तू जनता है, ये भूल है और कुछ भी नही,
हमने कितनो को, इसी भ्रम मे फँसा रखा है |
वो बात और है की हम उनसे अलग दिखाते है,
मगर ये अफवाह भी, खुद हमने उड़ा रखा है |
वो तो सच बोलता था, जो भी किया था उसने,
हमने तो खुद से भी, कई राज़ छुपा रखा है |
तुम जितना बेच सको, बेच लो दुनियाँ "आनंद",
बस चार दिन का सही, ये बाज़ार बचा रखा है |
बच के निकल गये तो, अच्छी है किस्मत "आनंद",
वो भी मुझसा ही था,हमने यहाँ जिसको हटा रखा है |
भाव उम्दा है-जरा शिल्प पर और नजर डालें. अफवाह उड़ा रखी है-या रखा है?
ReplyDeleteथोड़ा ध्यान देंगे, बहुत बेहतर रचना बनेगी.
आशा है आप सुझाव को अन्यथा नहीं लेंगे.
शुभकामनाऐं.
बच के निकल गये तो, अच्छी है किस्मत "आनंद",
ReplyDeleteवो भी मुझसा ही था,हमने यहाँ जिसको हटा रखा है |
सचमुच अच्छा है।
बहुत ही सुंदर कवीता लिखी है अन्त की पक्तिंया तो एक सच ही है.
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत धन्यवाद !
ReplyDeleteउम्मीद करता हूँ की आगे भी आप सभी का मार्ग दर्शन मिलता रहेगा |
bahut khOob chha gaye badhaai
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