कभी-कभी ये शब्द मेरे,
मुझसे बेईमानी करते है|
ख़ुद को इधर उधर करके,
कुछ अनचाहा सा गढ़ते है |
भाव का होता है आभाव,
रस अलंकार से लड़ते है |
कभी कभी पन्ने मेरे ,
कुछ चितकबरे से दिखते हैं |
पहले मैं यही समझता था,
मैं जादूगर हूँ शब्दों का |
पर उलझाकर ये मुझको,
बस अपने मन की करते है |
पर ये सच है शब्द मेरे,
मुझको पहचान दिलाते है |
मेरे दिल की बातों को,
ये कागज पर ले आते है |
ये भी सच है इनके बिन,
" आनंद" का अस्तित्व नही |
हो उबड़ खाबड़ जैसी भी,
पहचान मेरी बस इनसे ही |
कभी-कभी ये शब्द मेरे,
मुझसे बेईमानी करते है|
ख़ुद को इधर उधर करके,
कुछ अनचाहा सा गढ़ते है
शब्दों का कितना संजीव वर्णन किया है आपने ...मान गए
ReplyDeleteअनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
कभी-कभी ये शब्द मेरे,
ReplyDeleteमुझसे बेईमानी करते है|
ख़ुद को इधर उधर करके,
कुछ अनचाहा सा गढ़ते है
सही लिखा हे.
आपको गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभ कामना
अरे बहुत सुंदर लिखा आप ने इन शव्दो का खेल,
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत सुंदर वर्णन शब्दों के खेल का । बधाई ।
ReplyDeleteअरे वाह ! आपको पढकर तो मज़ा ही आगया !
ReplyDeleteजी हां , सब शब्दों का ही तो खेल है....आप सबों को गणतंत्र दिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआप सभी के प्यार और परामर्श का मुझे लिखने की प्रेरणा देता है |
ReplyDeleteकृपया अपना स्नेह इसी प्रकार बनाये रखे और कमेन्ट जरूर दे .......
पर ये सच है शब्द मेरे,
ReplyDeleteमुझको पहचान दिलाते है |
मेरे दिल की बातों को,
ये कागज पर ले आते है |
-बिल्कुल सही कहते हैं--शब्द ही तो पहचान दिलाते हैं
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
बिल्कुल सही
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें...
बहुत सुन्दर और प्रभावशाली रचना
ReplyDeletebahut sunder yahan bhi aapne apne shabdon kaa khel dikha hi dya
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