Friday, January 9, 2009

प्रण ये भी उठाकर चलिए...

जो भी मिल जाए उसे दोस्त बनाते चलिए,
फ़िज़ा मे अमन का एक फूल खिलाते चलिए |

खिलखिला के हो रुख्सत जो मिले अब हमसे,
अपने कंधो को आँसुओ से भिगोते रहिए |

यहाँ बिखरी हो किल्कारियाँ मोती की तरह,
पड़े जो राह मे उसे भी गोद उठाते चलिए |

हर घर मे उजाला हो फिर मकसद अपना,
अपने घर का एक दिया बाजू मे जलाते रहिए |

न खाली पेट सोए यार किसी का बचपन,
अपनी थाली की एक रोटी ही बाँटते चलिए |

ना आए आँच कभी, देश के उपर कोई,
इस नये वर्ष मे प्रण ये भी उठाकर चलिए |

हो नये वर्ष मे चारो तरफ खुशियाँ फैली,
अपनी रचनाओ से "आनंद" लूटाते रहिए |

7 comments:

  1. न खाली पेट सोए यार किसी का बचपन,
    अपनी थाली की एक रोटी ही बाँटते चलिए |

    बहुत सुंदर बात कही आपने

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  2. वाह ! बहुत बहुत सुंदर ! लाजवाब ग़ज़ल !

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  3. aap ke comments ka bahut bahut swagat hai...

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  4. bahut baDIyaa vichaar hain aapke uva shkti chahe to bahut kuvhh kar sakti hai lage rahiye

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  5. "har ghar mei ujala ho phir maqsad apna.."

    ek khoobsurat aur asardaar she`r...
    rachna apne aap meiN muqammal hai.
    badhaaee....!!
    ---MUFLIS---

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  6. न खाली पेट सोए यार किसी का बचपन,
    अपनी थाली की एक रोटी ही बाँटते चलिए |
    bahut hi sundar bhaavnayen liye hue hai aap ki kavita ,achchee lagi.

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  7. jo bhi mil jaye use dost banate chaliye
    kya khub,

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