जो भी मिल जाए उसे दोस्त बनाते चलिए,
फ़िज़ा मे अमन का एक फूल खिलाते चलिए |
खिलखिला के हो रुख्सत जो मिले अब हमसे,
अपने कंधो को आँसुओ से भिगोते रहिए |
यहाँ बिखरी हो किल्कारियाँ मोती की तरह,
पड़े जो राह मे उसे भी गोद उठाते चलिए |
हर घर मे उजाला हो फिर मकसद अपना,
अपने घर का एक दिया बाजू मे जलाते रहिए |
न खाली पेट सोए यार किसी का बचपन,
अपनी थाली की एक रोटी ही बाँटते चलिए |
ना आए आँच कभी, देश के उपर कोई,
इस नये वर्ष मे प्रण ये भी उठाकर चलिए |
हो नये वर्ष मे चारो तरफ खुशियाँ फैली,
अपनी रचनाओ से "आनंद" लूटाते रहिए |
न खाली पेट सोए यार किसी का बचपन,
ReplyDeleteअपनी थाली की एक रोटी ही बाँटते चलिए |
बहुत सुंदर बात कही आपने
वाह ! बहुत बहुत सुंदर ! लाजवाब ग़ज़ल !
ReplyDeleteaap ke comments ka bahut bahut swagat hai...
ReplyDeletebahut baDIyaa vichaar hain aapke uva shkti chahe to bahut kuvhh kar sakti hai lage rahiye
ReplyDelete"har ghar mei ujala ho phir maqsad apna.."
ReplyDeleteek khoobsurat aur asardaar she`r...
rachna apne aap meiN muqammal hai.
badhaaee....!!
---MUFLIS---
न खाली पेट सोए यार किसी का बचपन,
ReplyDeleteअपनी थाली की एक रोटी ही बाँटते चलिए |
bahut hi sundar bhaavnayen liye hue hai aap ki kavita ,achchee lagi.
jo bhi mil jaye use dost banate chaliye
ReplyDeletekya khub,